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Max Lab
Sep 09, 2025
गर्भावस्था के दौरान माँ और होने वाले बच्चे दोनों की सेहत की निगरानी बेहद ज़रूरी होती है। इसी वजह से डॉक्टर समय-समय पर कुछ ख़ास ब्लड टेस्ट कराने की सलाह देते हैं। इनमें डबल मार्कर टेस्ट और क्वाड्रुपल मार्कर टेस्ट अहम हैं। इन टेस्ट्स से गर्भस्थ शिशु में किसी तरह की न्यूरोलॉजिकल (स्नायु संबंधी) या जेनेटिक समस्या की संभावना का पता लगाया जा सकता है।
डबल मार्कर टेस्ट, जिसे मेटरनल सीरम स्क्रीनिंग भी कहा जाता है, गर्भावस्था की पहली तिमाही (11 से 14 हफ्ते के बीच) में करवाने की सलाह दी जाती है।
अगर रिपोर्ट नॉर्मल है, तो शिशु के विकास में किसी असामान्यता का खतरा नहीं होता।
गर्भावस्था की दूसरी तिमाही (15 से 20 हफ्ते के बीच) में क्वाड्रुपल मार्कर टेस्ट कराया जाता है। इसमें माँ के ब्लड में चार हार्मोन/प्रोटीन की जाँच की जाती है:
अगर इनमें से किसी एक हार्मोन की जाँच न हो तो इसे ट्रिपल मार्कर टेस्ट कहा जाता है।
यह टेस्ट शिशु में:
डॉक्टर ये टेस्ट खासतौर पर उन गर्भवती महिलाओं को करवाने की सलाह देते हैं जिनमें रिस्क फैक्टर्स हों:
हालाँकि, ये टेस्ट कराना पूरी तरह महिला की व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है।
गर्भावस्था के दौरान डबल मार्कर और क्वाड्रुपल मार्कर टेस्ट करवाना माँ और शिशु दोनों की सेहत के लिए फायदेमंद है। ये टेस्ट किसी भी संभावित विकार की समय रहते पहचान करने में मदद करते हैं, ताकि बच्चे को एक सुरक्षित और स्वस्थ जीवन दिया जा सके।
डबल मार्कर टेस्ट से गर्भ में पल रहे बच्चे में क्रोमोसोमल असामान्यता (जैसे डाउन सिंड्रोम, एडवर्ड्स सिंड्रोम) और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर की संभावना का पता चलता है। यह टेस्ट रिस्क बताता है, कन्फर्मेशन नहीं।
क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट प्रेगनेंसी के दूसरे ट्राइमेस्टर में किया जाने वाला ब्लड टेस्ट है, जिसमें चार हार्मोन्स (AFP, hCG, Inhibin A, uE3) को जांचा जाता है। इससे बच्चे में जेनेटिक डिफेक्ट्स, डाउन सिंड्रोम और स्पाइना बिफिडा जैसी समस्याओं का पता लगाया जाता है।
डबल मार्कर टेस्ट पहले ट्राइमेस्टर (11–14 हफ्ते) में होता है और इसमें 2 मार्कर्स (Free Beta hCG और PAPP-A) देखे जाते हैं।
ट्रिपल मार्कर टेस्ट दूसरे ट्राइमेस्टर (15–20 हफ्ते) में होता है और इसमें 3 मार्कर्स (AFP, hCG, uE3) की जांच की जाती है।
क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट आमतौर पर 15 से 20 हफ्ते की गर्भावस्था में किया जाता है।
डबल मार्कर टेस्ट प्रेगनेंसी के पहले ट्राइमेस्टर में, यानी 11 से 14 हफ्ते के बीच करवाना सबसे उपयुक्त होता है।
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